शीतला सप्तमी के दिन जरूर सुनें शीतला माता की कथा तभी मिलता है व्रत का संपूर्ण फल और पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं सावन माह के सुक्ल पक्ष की सप्तमी को शीतला माता का पर्व मनाया जाता है. इस दिन स्त्रियां अपनी संतान की सुख समृद्धि एवं परिवार के सौभाग्य हेतु व्रत रखती हैं तथा शीतला माता का पूजन करती हैं. मान्यताओं के अनुसार शीतला माता का पूजन करने से रोग शांत होते हैं विशेष रुप से बच्चों में होने वाली चेचक से संबंधित बिमारी के बचाव हेतु इस दिन को काफी खास माना गया है.इस दिन स्त्रियां व्रत रखती हैं तथा शीतला माता की कथा पढ़ती और सुनती हैं. शीतला सप्तमी के दिन किया गया अनुष्ठान माता का आशीर्वाद प्रदान करता है. आईये जानें क्या है शीतला सप्तमी व्रत की कथा और पाएं जीवन में सुख समृद्धि और सौभाग्य का वरदान

शीतला सप्तमी कथा
एक बार शीतला माता ने सोचा कि आज देखते हैं कौन मेरी पूजा करता है, कौन मुझ पर विश्वास करता है. यह सोचकर माता शीतला राजस्थान के डूंगरी गांव में आ गईं और उन्होंने देखा कि इस गांव में कोई मंदिर नहीं है और न ही मेरी पूजा होती है. माता शीतला गांव की गलियों में टहल रही थीं कि तभी किसी ने एक घर के ऊपर से उबला हुआ चावल का पानी नीचे फेंक दिया. वह उबलता पानी शीतला माता पर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में छाले हो गए. शीतला माता का पूरा शरीर जलने लगा.
गांव में हर तरफ शीतला माता चिल्लाने लगी, वह जल गई, मेरा शरीर जल रहा है, मेरा शरीर जल रहा है. कोई मेरी मदद करो लेकिन उस गांव में शीतला माता की किसी ने मदद नहीं की. वहां एक कुम्हार महिला अपने घर के बाहर बैठी थी. कुम्हारन ने देखा कि यह बुढ़िया बहुत जली हुई है. उसके पूरे शरीर में गर्मी है. उसके पूरे शरीर पर छाले हैं. यह गर्मी सहन नहीं कर पा रहा है. तब कुम्हार ने कहा, हे माता! तुम यहाँ बैठो, मैं तुम्हारे शरीर पर ठंडा पानी डालता हूँ. कुम्हार ने उस बूढ़ी औरत पर ठंडा पानी डाला और कहा, हे माँ! रात में बनी रबड़ी मेरे घर में रखी जाती है और कुछ दही भी है. आप दही और रबड़ी खाइए. बूढ़ी माई ने रबड़ी और दही खायी तो शरीर को ठंडक का अहसास हुआ.
तब कुम्हारन ने कहा - आओ माँ, तुम्हारे सिर पर बाल बहुत बिखरे हुए हैं, मैं तुम्हारी चोटी बांध दूंगा. अचानक कुम्हार की नज़र उस बुढ़िया के सिर के पीछे पड़ी तो कुम्हार ने देखा कि बालों के अंदर एक आँख छिपी हुई है. यह देख कुम्हारन डर के मारे भागने लगी, जब उस बूढ़ी माई ने कहा- रुक बेटी, डरो मत. मैं भूत नहीं हूं. मैं हूँ शीतला देवी, मैं इस घर में आई थी यह देखने के लिए कि मुझ पर कौन विश्वास करता है. जो मेरी उपासना करते हैं, ऐसा कह कर माता अपने सिर पर स्वर्ण मुकुट धारण कर चार भुजाओं वाला हीरा आभूषण धारण कर अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुई.माँ को देखकर कुम्हारन सोचने लगी कि अब बेचारी माँ को कहाँ बैठाऊँ. तब माँ ने कहा - हे पुत्री !
आप किस सोच में पड़ गई?तब कुम्हारन ने हाथ जोड़कर कहा, आंखों में आंसू बह रहे हैं- हे माता! मेरे घर में चारों ओर गरीबी बिखरी हुई है. मैं तुम्हें कहाँ बैठाऊँ? मेरे घर में न तो कोई पद है और न ही बैठने के लिए आसन. तब शीतला माता ने प्रसन्न होकर उस के घर पर खड़े होकर गधे पर बैठकर, एक हाथ में झाडू और दूसरे हाथ में एक डली लेकर के घर की दरिद्रता मिटा दी. इसी तरह जो भक्त भक्ति भाव से शीतला माता की पूजा करता है, अष्टमी के दिन उनको ठंडा पानी, दही और बासी ठंडा भोजन देता है, उसके घर की दरिद्रता दूर हो जाती है.