बिलासपुर । स्वर्गीय रामदुलारे आत्मानन्द स्कूल मुक्तिधाम सरकन्डा के प्राचार्या की तानाशाही से परेशान दिव्यांग शिक्षिका और किडनी मरीज ने प्रशासन से लिखित शिकायत किया है। शिकायत में परेशान दिव्यांग शिक्षिका और डायलिसिस के मरीज शिक्षक ने आत्मानन्द स्कूल की प्राचार्या पर गंभीर आरोप लगाया है। शिक्षिका और शिक्षक ने बताया कि शिकायत के बाद कार्रवाई नहीं होने से प्राचार्या के हौसले ना केवल बुलन्द हो गए हैं। बल्कि प्रताडित करने का रोज नया नया तरीका इजाद कर रही है। ऐसे में नौकरी करना अब मुश्किल हो गया है।
नहीं दिया जा रहा वेतन
स्वर्गीय रामदुलारे शासकीय उच्चत्तर माध्यमिक आत्मानन्द स्कूल सरकन्डा के शिक्षकों ने संस्था की प्राचार्या पर गंभीर आरोप लगाया है। दिव्यांग और मरीज शिक्षकों के अनुसार प्राचार्या ने नौकरी करना तो दूरज्जीना भी मुश्किल कर दिया है। संस्था में पदस्थ जीव विज्ञान के व्याख्यता राजेन्द्र घर शर्मा ने बताया कि वह अस्थि बाधित हैं.. किडनी की बीमारी भी है। हर दूसरे दिन डायलिसिस कराना होता है। वेतन से ही परिवार का गुजारा होता है। बावजूद इसके ना जाने किस बात को लेकर प्राचार्य नाराज हैं। तीन महीने का वेतन रोक दिया है। जबकि अन्य संस्था के संलग्न शिक्षको का वेतन आसानी निकल जाता है। लेकिन उनकी संस्था ने उन्हीं का वेतन रोक दिया है।
राजेन्द्र धर के अनुसार कई बार प्राचार्या वैश्य से जानने का प्रयास किया। लेकिन सारे प्रयास व्यर्थ गए। जबकि उन्हें रूपयों की सख्त जरूरत है। दरअसल प्राचार्या को दिव्यांग और मरीजों से सख्त नफरत है। शायद इसलिए उन्हें प्रताडि़त भी किया जा रहा है। संयुक्त संचालक शिक्षा, जिला शिक्षा अधिकारी, नोडल अधिकारी समग्र शिक्षा से शिकायत की है। इसके बाद उन्हें कुछ ज्यादा ही प्रताडि़त किया जाने लगा है।
 जानबूझकर किया जा रहा परेशान
राजेन्द्र धर के अनसुार उनकी नियुक्ति जीव विज्ञान व्याख्याता के पद पर हुई है। प्रतिनियुक्ति के लिए सहमति आवेदन पत्र प्राचार्य के माध्यम से जिला शिक्षा अधिकारी को दिया था। बावजूद इसके उनकी जगह शुभनय गोले को जीव विज्ञान व्याख्याता के पद पर प्रतिनियुक्ति किया गया। शुभनय गोले को संस्था ने जानबूझकर अलग से संलग्न किया  है। चूंकि वह किडनी डायलिसिस के मरीज हैं। प्रतिनियुक्ति दावा आपत्ति के बावजूद जानबूझकर उन्हें प्रतिनियुक्ति नहीं दिया जा रहा है।  मरीज शिक्षक ने बताया कि बार बार निवेदन के बाद भी उनसे रसायन शास्त्र की कक्षा लेने को मजबूर किया जाता है। इससे उन्हें मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ रहा है।