भले ही हम दशहरे पर रावण वध व दीपावली पर श्रीराम के अयोध्या आगमन के उपलक्ष्य में दशहरा व दीपावली मनाते है,लेकिन श्रीराम के अयोध्या लौटने की तिथि पर संशय आज भी बना हुआ है।
 रावण का वध करने के बाद लंका से अयोध्या लौटते समय राम, लक्ष्मण, सीता एवं हनुमान पुष्पक विमान से अयोध्या के पास नंदीग्राम नामक स्थान पर उतरे थे, जहां पर राम की खड़ाऊं रखकर राजा भरत अपना राजपाट चलाते थे। नंदीग्राम में एक दिन रुकने के बाद वे दूसरे दिन अयोध्या पहुंचे थे।जबकि रावण वध यदि दशमी के दिन हुआ था तो उसके दूसरे दिन सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरने के बाद अर्थात उन्हें अग्निदेव से वापस मांगने के बाद श्रीराम अयोध्या लौटे थे।यानि वे एकादशी के दिन अयोध्‍या की ओर चले थे और रास्ते में वह निषादराज गुह केवट के यहां रुके भी थे। श्रीराम का नंदीग्राम में भव्य स्वागत किया गया था। उस दौरान अयोध्या के सभी आठों मंत्री और राजा दशरथ की तीनों रानियां हाथियों पर सवार होकर नंदीग्राम पहुंचे थे। उनके साथ अयोध्या के आम नागरिक भी नंदीग्रम पहुंचे थे। वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड सर्ग 127 के अनुसार अयोध्या के नागरिकों, मंत्रियों और रानियों ने देखा कि श्रीराम पुष्पक विमान से धरती पर उतरे है। उन सबने विमान पर विराजमान श्रीराम के दर्शन किए और वे उन्हें लेकर अयोध्या गए।
 श्रीराम का जन्म इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज के शोधानुसार श्रीराम का जन्म  5114 ईसा पूर्व हुआ था। जबकि श्रीराम ने रावण का वध 4 दिसंबर 5076 ईसा पूर्व किया था। वे 29वें दिन 2 जनवरी 5075 ईसा पूर्व वापस अयोध्या लौटे थे। अयोध्या लौटने के खुशी में अयोध्यावासियों ने दीपावली मनाई थी। रुकने के दिनों को छोड़कर इस सफर में उन्हें करीब 24 दिन लगे थे। इस दौरान वे 8 से 9 जगहों पर रुके थे। यह निष्कर्ष वाल्मीकि रामायण में लिखे उस दौर के ग्रहों, नक्षत्रों, तारामंडलों की स्‍थिति के आधार पर नासा के वेद स्पेशल प्लेटिनम गोल्ड सॉफ्टवेयर से निकाला गया है।श्रीराम की खड़ाऊ ले जाते समय भरत ने कहा था कि 
चर्तुर्दशे ही संपूर्ण वर्षेदद्व निरघुतम।
नद्रक्ष्यामि यदि त्वां तु प्रवेक्ष्यामि हुताशन।।
 अर्थात: हे रघुकुल श्रेष्ठ। जिस दिन चौदह वर्ष पूरे होंगे उस दिन यदि आपको अयोध्या में नहीं देखूंगा तो अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा। भरत के मुख से ऐसे प्रतिज्ञापूर्ण शब्द सुनकर रामजी ने भरत को आश्वस्त करते हुए कहा था- तथेति प्रतिज्ञाय- अर्थात ऐसा ही होगा। इसी प्राकार महर्षि वशिष्ठ ने राजा दशरथ से राम के राज्याभिषेक के संदर्भ में कहा था-चैत्र:श्रीमानय मास:पुण्य पुष्पितकानन:।
यौव राज्याय रामस्य सर्व मेवोयकल्प्यताम्।।
 अर्थात: जिसमें वन पुष्पित हो गए। ऐसी शोभा कांति से युक्त यह पवित्र चैत्र मास है। श्रीराम का राज्याभिषेक पुष्प नक्षत्र चैत्र शुक्ल पक्ष में करने का विचार निश्चित किया गया है। षष्ठी तिथि को पुष्य नक्षत्र था। श्रीराम लंका विजय के पश्चात अपने 14 वर्ष पूर्ण करके पंचमी तिथि को भारद्वाज ऋषि के आश्रम में आए थे। वहां एक दिन ठहरे और अगले दिन उन्होंने अयोध्या के लिए प्रस्थान किया, उससे पहले उन्होंने अपने भाई भरत से पंचमी के दिन हनुमानजी के द्वारा कहलवाया-
 अविघ्न पुष्यो गेन श्वों राम दृष्टिमर्हसि।
अर्थात: हे भरत! कल पुष्य नक्षत्र में आप राम को यहां देखेंगे। इस प्रकार राम चैत्र के माह में षष्ठी के दिन ही ठीक समय पर अयोध्या में पुन: लौटकर आए।वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीताजी का हरण बसंत ऋतु में हुआ था। अपहरण के पश्चात रावण ने उन्हें बारह मास का समय देते हुए कहा कि हे सीते! यदि इस अवधि के भीतर तुमने मुझे स्वीकार नहीं किया तो मेरे याचक तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगे।
 यह बाद हनुमान ने जब श्रीराम से कही तो उन्होंने भली प्रकार चिंतन करके सुग्रीव को आदेश दिया कि
 उत्तरा फाल्गुनी हयघ श्वस्तु हस्तेन योक्ष्यते।
अभिप्रयास सुग्रिव सर्वानीक समावृता:।।
 अर्थात आज उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र है। कल हस्त नक्षत्र से इसका योग होगा। हे सुग्रीव इस समय पर सेना लेकर लंका पर चढ़ाई कर दो। इस प्रकार फाल्गुन मास में श्री लंका पर चढ़ाई का आदेश श्रीराम ने दिया था। यह जानकर रावण ने भी अपने मंत्री से सलाह लेकर कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को युद्धारंभ करके अमावस्या के दिन सेना से युक्त होकर विजय के लिए निकला और चैत्र मास की अमावस्या को रावण मारा गया था। तब रावण की अंत्येष्टि क्रिया तथा विभीषण के राजतिलक के पश्चात रामचंद्र यथाशीघ्र अयोध्या के लिए निकल पड़े। इससे सिद्ध होता है कि श्रीराम चैत्र के माह में ही अयोध्या लौटे थे। इसी खुशी में लोगों ने अपने अपने घरों में दीप जलाकर उनका स्वागत किया।ऐसे में चैत्र मास के बजाए कार्तिक मास में दीपावली मनाने का क्या कारण है,इस पर विचार मंथन जरूरी है।दरअसल दीपावली खरीफ की फसल के बाद का पर्व है।किसान अपनी फसल की खुशी में शरद ऋतु आगमन पर घरों की साफ सफाई के साथ धन धान्य के कामना करते हुए इस दीपावली पर्व को परम्परागत रूप से सदियों से मनाते आ रहे है।