पारिवारिक सदस्यों के त्याग, सहयोग, स्वच्छता, प्रेम, संतुष्टि व व्यसनमुक्ति से ही परिवार संयुक्त और समृद्घिशाली बनता है। वे सौभाग्यशाली हैं जो संयुक्त परिवार में रह रहे हैं तथा जिन्हें माता -पिता का सान्निध्य प्राप्त हो रहा है। विश्व बंधुत्व की बात करने वालों को पहले अपने परिवार में बंधुत्व बनाए रखने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। आज छोटी-छोटी बातों को लेकर परिवार टूट रहे हैं। हम अधिकारों की बजाए एक-दूसरे के हितों का ध्यान रखेंगे, तभी हमारे परिवार खुशहाल और सुदृढ़ होंगे।  
एक माता-पिता अपने पाँच-पाँच बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करके योग्य बना देते हैं जबकि पाँच-पाँच बच्चे बुढ़ापे में अपने एक माता-पिता को संभालने से कतराते हैं। आज हम जितने बूढ़े दादा-दादी के प्रति लापरवाह हैं यदि हमारे बचपन में वे हमारे प्रति इतने ही लापरवाह होते तो हमारी क्या दुर्गति हो गई होती। इस बात को युवा पीढ़ी को अच्छी तरह ध्यान रखना चाहिए।   
परिवार में ब्याह कर आई नई बहू को चाहिए कि जितने उम्र का पति उसे मिला है कम से कम उतने साल तो सास-ससुर का फर्ज मानकर उन्हें निभा देना चाहिए। इस पीढ़ी को व्यसनमुक्त होकर अपने माता-पिता की सेवा करने, उनके प्रणाम करने के तरीको को जीवन में अपनाना चाहिए। जीवन में सदाचार को अपना कर हमें अपने विचारों को बदलना होगा। विचार जीवन का प्रतिबिंब है। संतों की संगति से अच्छे विचार आते हैं। विचार अच्छे होना हमारी जागरूकता को दर्शाता है। हमारे विचार हमारे जीवन का परिचय देते हैं। रुपया-पैसे का लालच छोड़कर हमें जीवन में धार्मिक आराधना करते रहना चाहिए। जिससे हमारा जीवन और हमारे परिवार का जीवन सार्थक होगा।