हनुमान जन्मोत्सव पर विशेष


शिवकुमार शर्मा
ख़बरमंत्री न्यूज नेटवर्क

बल ,बुद्धि, विद्या और विवेक प्रदान करने वाले परम शूरवीर, अंजनानंदन ,पवन देव की तपस्या के परिणाम पुंज, रुद्रावतार ,आधि -व्याधि -शोक संताप दाहादि का प्रशमन करने वाले समस्त प्रकार के भयों मुक्ति  दाता लोक विश्रुत प्रभावशाली जनदेवता हनुमान जी का प्राकट्य इस धरा पर चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार के दिन होने से देश भर में आज उनका जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है ।

वे स्वयं रूद्र के अवतार हैं ।महाकवि तुलसीदास जी ने दोहावली में वर्णन किया है -

जेहि शरीर रति राम सों, सोइ आदरहिं सुजान।

 रूद्र देह तजि मोह बस ,शंकर भए हनुमान ।।

 जान राम सेवा सरस, समुझि करब अनुमान ।

 पुरुषा तें सेवक भए  ,हर तें भे हनुमान ।।

रिक् संहिता, उपनिषद ,श्रीमद्भागवत पुराण, नारद पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्कंद पुराण ,महाभारत ,रामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण,सूक्ति सुधाकर ,विनय पत्रिका, कवितावली,  बृहज्जोतिषार्णव आदि में राम भक्त, कामधुक् ,हनुमानजी के सम्बन्ध में विस्तार से पढ़ा जा सकता है। 

अष्ट सिद्धियों -अणिमा ,महिमा,लघिमा ,गरिमा ,प्राप्ति ,प्राकाम्य , ईशित्व और वशित्व  तथा   नव निधियों -पद्म ,महापद्म, नील, मुकुंद ,नंद ,मकर, कच्छप ,शंख खर्व स्वामी,लोक विस्मयकारी शक्तियों से संपन्न बजरंगबली श्रीराम के अनन्य भक्त है। डॉ. श्री रणवीर सिंह शक्तावत "रसिक "लिखते हैं -

 फारि निज वक्षस्थल वीर हनुमान कह्यो,

 लीजे लखि मातु ! खोलि हृदय बताऊं मैं।

  लखन समेत सियाराम सुखधाम सदा,

   आठों जाम मेरे उर धाम धरि ध्याऊँ मैं ।।

   जो पे आजु  काहू कैं प्रतीति नाहिं होय हिए.

    रोम- रोम फारि राम नाम देखराऊँ मैं ।

    बात न बनाऊँ बात सांची करि पाऊँ जो न.

    बात न बढ़ाऊँ बात जात न कहाऊँ मैं ।।

ज्ञानियों में अगर पंक्ति में गिने जाने वाले हनुमान जी चिरंजीवी हैं उनके बुद्धि चातुर्य के बारे में महाकवि केशव दास जी ने कहा है -

सांचौ एक नाम हरि लीन्हे  सब दुख हरि, और नाम परिहरि नरहरि ठाए  हौ।

वानर न होहु तुम मेरे बानरस सम, बलीमुख सूर बली मुख निज गाए हौ।।

साखा मृग  नाही बुद्धि बलन के साखामृग कै धौं वेद साखामृग केशव कों भाए हौ।

 साधु हनुमंत बलवंत जसवंत तुम ,गए एक काज को अनेक करि आए हौ।।

जब कहीं हारी बीमारी जिंदगी की गाड़ी अटकती है तो

 " नासे रोग हरै सब पीरा" का जाप हर दवाई से बढ़कर माना जाता है उनके अप्रमेय अद्वितीय गुणों के कारण उनकी सर्वत्र सर्वकालिक सर्वदा उपस्थिति लोकमंगल करने वाली होती है शनिदेव के साथ उनकी मित्रता के कारण भी उनकी दोहरी पूजा होती रहती है हिंदुस्तान और हिंदुस्तान के बाहर जहां-जहां भी हिंदुस्तानी और विदेशी भक्त रह रहे हैं वहां वहां आंजनेय विराजमान है हर मोहल्ला ,गली, चौराहे ,शहर ,राज्य  में पूर्व ,पश्चिम, उत्तर ,दक्षिण सब दिशाओं में उनकी मौजूदगी उनकी लोक मान्यता का जीवंत प्रमाण है ।मंगलवार और शनिवार को हर घर परिवार का व्यक्ति, हनुमान चालीसा, बजरंगबान ,सुंदरकांड का पाठ करता मिल जाएगा । धनवान मंदिर में तो बलवान अखाड़े और मंदिर दोनों में ही उनकी पूजा करता है। अमीर, गरीब, बालक, युवा, वृद्ध ,स्त्री -पुरुष सब उनकी पूजा में निमग्न रहते हैं। कवि भूषण श्री जगदीश जी लिखते हैं- 

शीश पर आहीश ने तो जगदीश धारी धर ,

 कर पै भूधर धर उड़े आसमान हो ।

  सेवक संदेशक हो राम के महान ,किंतु 

  कष्ट वक्त भक्तों का भी करते कल्याण हो ।।

  अर्चना -आराधना के अनोखे हो देव तुम ,

  सब जाति मानती है ऐसे दयावान हो ।

   घर घर पूजते हैं चित्र भी पवित्र मान,

    कोई ग्राम है नहीं जहाँ न हनुमान हो ।।

हिंदुस्तान की एकता और अखंडता के लिए उनकी गांव-गांव में उपस्थिति वरदान हैं रुद्रावतार ,बजरंगबली हनुमान जी के चरणारविंदो में नमन।

प्रणवउं पवन कुमार ,खल बन पावक ग्यान घन ।

जासु हृदय आगार, बसहिं राम सर चाप धर ।।

(लेखक मप्र महिला आयोग के सचिव हैं)

न्यूज़ सोर्स : Khabarmantri News Network