इंदौर ।   दस वर्ष बाद प्रदेश की राजनीति में लौटे कैलाश विजयवर्गीय की स्थिति उस फारेन रिटर्न बेटे की तरह हो गई है, जिससे हर कोई बदलाव और बेहतरी की उम्मीद कर रहा है। हर कोई उन्हें जादुई चिराग समझ रहा है, जिससे जब जो मांगेंगे, वह मिल जाएगा। विजयवर्गीय वर्षों तक राष्ट्रीय राजनीति में अलग-अलग भूमिकाओं में रहे हैं। चाहे हरियाणा हो या बंगाल, हर बार पार्टी ने उन्हें महत्वपूर्ण भूमिकाएं सौंपी और उन्होंने उसका बखूबी निर्वहन भी किया। अब जब लंबे अंतराल के बाद विजयवर्गीय प्रदेश की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हैं, तो जनता की अपेक्षाएं वाजिब भी हैं। विजयवर्गीय भी इस बात को समझ चुके हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपना पूरा समय प्रदेश में देना शुरू कर दिया है। देखना यह है कि फारेन रिटर्न इस बेटे के संबंधों का प्रदेश और इंदौर को फायदा कब तक मिलता है।

32 वर्ष का संघर्ष भी बन गया उत्सव

हर छोटे-बड़े मामले को आयोजन में बदलने में माहिर भाजपा ने हुकमचंद मिल के मजदूरों के 32 वर्ष के संघर्ष को भी उत्सव बना दिया। हुकमचंद मिल मामले का पटाक्षेप भले ही कोर्ट के आदेश से हुआ हो, लेकिन पार्टी ने आयोजन के जरिए आमजन तक यह संदेश पहुंचा दिया कि यह उसके प्रयासों का ही नतीजा है। मजदूरों के खाते में भले ही अब तक मुआवजे का एक रुपया नहीं आया, लेकिन वे भी इस उत्सव में पूरे जोश के साथ शामिल हुए। मिल की जमीन को हाउसिंग बोर्ड अपने कब्जे में ले चुका है। मुआवजे की रकम भी परिसमापक के खाते में पहुंच गई है। अब इंतजार इस रकम के मजदूर के खाते तक पहुंचने का है। 32 वर्ष तक अनवरत आंदोलन चलाने वाले मजदूरों के लिए यह इंतजार भारी पड़ रहा है। देखें आखिर यह खत्म कब होता है।

जमने लगा नगर निगम की मुहिम का रंग

लंबे इंतजार के बाद शुरू हुई नगर निगम की अतिक्रमण विरोधी मुहिम का रंग अब जमने लगा है। आपरेशन बंबई बाजार के बाद रानीपुरा क्षेत्र में कार्रवाई करते हुए महापौर ने अब तक बेधड़क सड़क और फुटपाथ तक पैर पसारने वालों को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वे सावधान हो जाएं। यह पहले वाला नगर निगम नहीं है। विधानसभा चुनाव के पहले और बाद में बहुत कुछ बदल चुका है। ऐसा लगता है कि कब्जा करने वालों को भी महापौर की भाषा समझ में आने लगी है। यही वजह है कि सड़क और फुटपाथ पर अवैध कब्जा करने वाले मुनादी होते ही खुद अतिक्रमण हटाने लगते हैं। देखना यह है कि महापौर के ये तेवर कितने दिन तक बने रहते हैं। जो भी हो, यह तो निश्चित है कि अगर ये तेवर पूरे कार्यकाल में बने रहे, तो और कुछ हो या न हो इंदौर की सड़कों का उद्धार अवश्य हो जाएगा।

ढूंढे नहीं मिल रहे मुद्दे

जनवरी 2024 में होने वाले इंदौर अभिभाषक संघ के वार्षिक चुनाव इस बार मुद्दा विहीन हैं। पार्किंग, कोर्ट शिफ्टिंग जैसे परंपरागत मुद्दों को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही। वकीलों के इंटरनेट मीडिया अकाउंट्स पर गुड मार्निंग, गुड नाइट, हैप्पी न्यू ईयर जैसे संदेशों को छोड़कर और कोई मैसेज ग्रुपों में नजर नहीं आ रहा। बरसों से इंदौर अभिभाषक संघ के चुनाव जिला न्यायालय की पार्किंग समस्या को मुद्दा बनाकर लड़े जाते रहे हैं। किंतु इस बार चुनाव के ठीक पहले यह समस्या हल हो गई। हाई कोर्ट के आदेश के बाद वकीलों को होप मिल की जमीन अस्थाई पार्किंग के लिए मिल गई। ऐसे में मुद्दा विहीन हुए चुनाव के चलते वकीलों में बहुत ज्यादा उत्साह नजर नहीं आ रहा। कोर्ट की नई बिल्डिंग में वकीलों के चेंबर का मुद्दा जरूर है, लेकिन कोई प्रत्याशी इस पर खुलकर कुछ बोलना नहीं चाह रहा। यही वजह है कि अब तक जिला न्यायालय में चुनाव का माहौल नहीं बन सका है।