मनुष्य-जीवन नाना प्रकार के प्रपंचों और प्रवृत्तियों का पुंज है। हम सब में अनेक भाव-कुभाव प्रत्येक पल मन-हृदय से टकराते रहते हैं। हमारा जीवन इन्हीं अच्छाइयों-बुराइयों के बीच व्यतीत होता रहता है। प्रेम और घृणा, उपकार और अपकार भी हमारे जीवन के अनिवार्य अंश हैं। जीवन में उपकार की प्रवृत्ति का अत्यंत महत्व है। दया, प्रेम, करुणा हमारी मूल प्रवृत्तियां हैं।  
इन्हीं से उपकार की भावना जाग्रत होती है। उपकार से व्यक्ति श्रेष्ठ बनता है। किसी आपदा में पड़े व्यक्तिि का आप उपकार करके देखें। उसका तो कल्याण होगा ही, किंतु इससे आपका मन प्रसन्नता से भर जाएगा। आपका रोम-रोम प्रफुल्लित हो उठेगा और आपके अंग-अंग में सैकड़ों सुमन खिलकर मुस्कराने लगेंगे। 1नि:स्वार्थ उपकार में मिला सुख आपके जीवन को सार्थक कर देगा। कभी-कभी आप हम देखते हैं कि अचानक संकट की घड़ी में जब केवल भगवान का सहारा होता है, तब कोई आकर आपकी ऐसी सहायता कर देता है जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होती। सहायता करने वाला व्यक्तिि मात्र भगवत् प्रेरणा के चलते ही अयाचित उपकार करके आपको चकित कर देता है, किंतु ऐसा करके उसे जो संतुष्टि मिलती है वही उसका समुचित पुरस्कार है। सच्चे मन और बिना किसी लालच के किया गया उपकार श्रेष्ठ माना गया है। इस उपकार के बदले में किसी प्रकार के प्रतिउपकार से आप यदि ऐसा कुछ करते हैं तो उसे श्रेष्ठता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। हमारे यहां संतों ने कहा है कि यदि कोई आपका अपकार भी करे तो भी आप उसका उपकार ही करें। अपकार की भावना में हिंसा की अभिव्यक्तिि होती है और उपकार में प्रेम और त्याग की।  
यह प्रेम आपको ईश्वरीय पथ की ओर ले जाता है और अपकार की भावना से मन में प्रतिशोध उत्पन्न होता है जो पतन का परिचायक है। यह हमें ईश्वर से विमुख करता है। उपकार की सहज प्रवृत्ति सब में कुछ न कुछ अंश में होती है। यह साधु-पुरुषों की संगति से बढ़ती है। यदि हम किसी का उपकार करते हैं तो यह मानव-जीवन की बड़ी उपलब्धि है। किसी के दुख में सहायक बनकर आप उससे जो आशीर्वाद प्राप्त करते हैं वह आपके दोनों लोकों को संवारता है। यह जीवन क्षण भंगुर है। इसमें आप यदि अपने सार्मथ्य के अनुसार किसी व्यथित व्यक्तिि की सहायता करके उसे उबार लेते हैं तो इसका फल ईश्वर की ओर से आपको अवश्य मिलेगा।