वॉशिंगटन । मंगल पर अब हमें पृथ्वी से ऑक्सीजन ले जाने की जरूरत नहीं होगी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मंगल के वातावरण से ही ऑक्सीजन बनाने में सफलता हासिल कर ली है। नासा के अनुसार मार्स ऑक्सीजन इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन एक्सपेरिमेंट (एमओएक्सआईई) की मदद से वैज्ञानिकों ने मंगल पर ही ऑक्सीजन का उत्पादन करना शुरू कर दिया है। इस ऑक्सीजन से भविष्य में मंगल मिशन पर अंतरिक्ष यात्रियों के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धता गृह के वातावरण से ही की जाएगी। दरअसल अभी मंगल ग्रह पर सर्दियां अपने चरम पर हैं। नासा के अनुसार ठंडी रातों में अपेक्षाकृत उच्च वायुमंडलीय दबाव बनने से मंगल पर भेजे गए एमओएक्सआईई को ऑक्सीजन बनाने में सफलता हासिल हुई है। ठंड के चलते उच्चतम वायु घनत्व का उत्पादन होने से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड के पैदा होने से एमओएक्सआईई ने अधिक ऑक्सीजन बनाने में सफलता हासिल की। फिलहाल यह मशीन लगभग 10.5 ग्राम प्रति घंटे की दर से ऑक्सीजन का उत्पादन कर रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक एक इंसान को जीवित रहने के लिए 21 ग्राम प्रति घंटे की दर से ऑक्सीजन चाहिए होती है। मतलब जितना यह मशीन उत्पादन कर रही उसकी दोगुनी ऑक्सीजन एक मानव को जीवित रखने में पर्याप्त है। नासा मंगल पर ऑक्सीजन पैदा करने से बहुत उत्साहित है।
मंगल की सतह से और कक्षा में चार से छह अंतरिक्ष यात्रियों के मानव दल को जिंदा रखने के लिए नासा को 2 से 3 किमी प्रति घंटा ऑक्सीजन का उत्पादन करना होगा। हालांकि अभी मशीन शुरुआती चरण में कार्य कर रही है, लेकिन नासा के मुताबिक इस मशीन का एडवांस वर्शन इस टारगेट को प्राप्त कर सकता है। इतनी ऑक्सीजन बनाने के लिए 25 किलोवाट पावर की आवश्यकता होगी और एमओएक्सआईई केवल 100 वाट पावर ही बना रहा है, इसलिए नासा का मानना है कि एडवांस संस्करण इस टारगेट को प्राप्त कर सकता है। फिलहाल अभी बन रही पावर का लगभग 10 फीसदी ही ऑक्सीजन उत्पन्न करने के लिए उपयोग होता है। शेष हवा को इकट्ठा करने वाले कंप्रेसर को चलाने में खपत हो जाता है।