राजस्थान का इतिहास शौर्य गाथाओं, बलिदान और जौहर की कहानियों से भरा पड़ा है. ये किस्से कहानियों लोग पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाते आ रहे हैं. स्कूल कॉलेज पाठ्यक्रम में भी ये पढ़ाए जाते हैं. लोग कौतूहल से रानियों के जौहर के किस्से सुनते पढ़ते हैं. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि राजस्थान में घोड़ी भी सती हुई थी.

राजस्थान की ऐतिहासिक घटनाओं में जौहर की अपनी अलग जगह है. चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मावती के जौहर का किस्सा बच्चा बच्चा जानता है. युद्ध में राजा की मौत के बाद उनकी रानियां सती / जौहर करती थीं. लेकिन नागौर के खरनाल गांव की एक अनोखी घना है. यहां एक घोड़ी के सती होने का जिक्र मिलता है.

क्या है इतिहास 
खरनाल गांव के मुकेश जाजड़ा वीर तेजाजी का किस्सा सुनाते हैं. वो बताते हैं महाराज का जन्म विक्रम सवंत 1130 में खरनाल गांव में हुआ था. .जब तेजाजी अपनी अर्द्धागिनी पेमल को लेने ससुराल गऐ तो वहां पर पेमल की सहेली लाच्छा गुजरी की गायें मेयर के चोर चुरा ले गए. तेजाजी महाराज उन्हें छुड़वाने के लिए जा रहे थे. तभी रास्ते में एक सांप जलता दिखाई दिया. तेजाजी ने जब सांप को बाहर निकाला तो वो अपने पूरे रूप में आ गया और उसने तेजाजी महराज को डसने की इच्छा जता दी. तेजाजी ने वादा किया कि मैं गाय छुड़वाकर आऊंगा फिर आप मुझे डस लेना. वादे के मुताबिक गाय छुड़वाने के बाद तेजाजी नाग देवता के पास लौट आए. सांप ने उनकी जीभ पर काट लिया. तेजाजी ने वहीं प्राण न्यौंछावर कर दिऐ.

तेजाजी के साथ घोड़ी सती
मुकेश आगे किस्सा सुनाते हैं. वो बताते हैं तेजाजी के प्राण न्यौछावर करने की बात सुनकर पूरा परिवार गहरे शोक में डूब गया. उनकी पत्नी पेमल ने सती होने की तैयारी कर ली. तेजाजी की बहन बुगरी भी सती के लिए तैयार हो गयीं. उनके साथ साथ, शेरा सांवली माता, नाग देवता ने अपने प्राण न्यौंछावर कर दिऐ. तेजाजी की मौत उनकी घोड़ी लीलण भी नहीं सह पायी. वो भी तेजाजी के साथ सती हो गयी. लीलण घोड़ी की समाधि आज भी खरनाल गांव में बनी हुई है .

घोड़ी की समाधि
खरनाल गांव में वीर तेजाजी महाराज का मंदिर बना हुआ है. उनकी घोड़ी की भी गांव में तालाब के पास बनी हुई है. यहां पर ग्रामीण आज भी पूजा करते हैं.

दिलचस्प मान्यता
इसके पीछे एक दिलचस्प मान्यता है. विक्रम सवंत 1160 में तेजाजी ने वचन निभाते हुए प्राण त्याग दिऐ थे. तब नाग देवता ने उन्हें वचन दिया था सांप के कुल के किसी भी जहरीले जन्तु के काटने पर आपके नाम की पूजा या तांती बांधी जाएगी. इससे जहर नहीं चढ़ेगा और पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ हो जाएगा. घोड़ी और तेजाजी की समाधि पर मन्नत मानते की परंपरा है.