संवेदनाओं और नेतृत्व का विकास भी करें प्रस्फुटन समितियां : मोहन नागर
प्रस्फुटन समितियों के क्षमता वृद्धि प्रशिक्षण कार्यक्रम में किया आह्वान
औषधीय पौधों की नर्सरी का भी किया शुभारंभ
घोड़ाडोंगरी । जन अभियान परिषद का विचार है कि जब तक देश के 6 लाख गाँव खड़े नहीं होंगे तब तक भारत विश्वगुरु नही बनेगा । केवल 10 हजार शहरों को खड़ा करने से ही यह नहीं होगा। अपितु इसके लिए ग्रामों को आत्मनिर्भर बनाना होगा। आज हम आजादी की 75 वीं वर्षगांठ को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं, जिस प्रकार का प्रयास हो रहा है मेरा विश्वास है कि जब आजादी के 100 वर्ष पूर्ण होंगे उस समय समूचा विश्व भारत के चरणों में होगा। यह विचार प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और भारत भारती के सचिव मोहन नागर ने शुक्रवार को पूर्वान्ह घोड़ाडोंगरी के निकट धाड़गांव में जन अभियान परिषद की ग्राम विकास प्रस्फुटन समितियों के क्षमता वृद्धि प्रशिक्षण कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर पूर्व संसदीय सचिव रामजीलाल उइके, समाजसेवी विशाल बत्रा, जन अभियान परिषद की जिला समन्वयक प्रिया चौधरी, विकासखण्ड समन्वयक संतोष राजपूत, सरपंच रामबकेश वरकड़े, जनपद सदस्य गोलू मवासे सहित घोड़ाडोंगरी विकासखंड की विभिन्न ग्राम विकास प्रस्फुटन समितियों के पदाधिकारी और सदस्य मौजूद थे।
श्री नागर ने प्रस्फुटन समितियों के सदस्यों का आह्वान करते हुए कहा कि प्रत्येक गांव को जलयुक्त, अन्नयुक्त और औषधि युक्त बनाने के लिए प्रस्फुटन समितियां विचार करंे। ग्रामों को आत्मनिर्भर बनाना है। इसीलिए जन अभियान परिषद नवांकुर समितियों, प्रस्फुटन समितियों के माध्यम से परिवर्तन लाने की चिंता करने वाले और ऐसे अभियानों में सहभागिता करने वाले युवाओं को टोलियां बना रही हैं। गौरतलब है कि कार्यक्रम के आरंभ में श्री नागर सहित उपस्थित अतिथियों ने पूजन कर एवं फीता काटकर औषधीय नर्सरी का शुभारंभ भी किया। जन अभियान परिषद की ग्राम विकास प्रस्फुटन समिति के मार्गदर्शन में धाड़गांव के महंगीलाल धुर्वे द्वारा स्थापित इस औषधीय नर्सरी में हर्रा, आंवला, गुलमोहर, गिलोय, करंज जैसे औषधीय पौधों का विकास किया जा रहा है। शुभारंभ के उपरांत सभी अतिथियों ने औषधीय नर्सरी का निरीक्षण किया। मंचीय कार्यक्रम को पूर्व संसदीय सचिव रामजीलाल उइके, समाजसेवी विशाल बत्रा, जन अभियान परिषद की जिला समन्वयक प्रिया चौधरी ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन विकासखंड समन्वयक संतोष राजपूत ने किया।
संवेदनाओं का और नेतृत्व का विकास करें
श्री नागर ने आह्वान किया कि ग्राम विकास प्रस्फुटन समितियां युवाओं में संवेदनाओं का और नेतृत्व का भी विकास करें। गाँव गाँव मे युवा नेतृत्व तैयार करें, युवाओं में क्षमता का विकास करें। यह सब प्रस्फुटन समितियों का काम है। उन्होंने कहा कि आज हर जगह कार्यकुशलता की बहुत कमी है शिक्षा में विभिन्न डिग्रियां लेने के बाद भी व्यक्ति को मूलभूत काम भी नहीं आते हैं ऐसे में शिक्षित व्यक्ति भी बेरोजगार कहलाता है। इसलिए प्रस्फुटन समितियों को गांव के युवाओं को स्किल्ड बनाना पड़ेगा। श्री नागर ने कार्यक्रम में बैठे ग्राम वासियों से आह्वान किया कि अपने गाँव की व्यवस्था बनाएं, कच्चे माल की प्रोसेसिंग करेंगे तो बाजार भी मिलेगा और दाम भी अधिक मिलेंगे। इसके लिए जो पुराना है उसको युगानुकूल बनाना और जो नया है-बाहर से आया है उसको देशानुकूल बनाना पड़ेगा।
धरती आवश्यकता पूरी कर सकती है स्वार्थ नहीं
केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय से ‘‘जल प्रहरी’’ के रूप में सम्मानित पर्यावरणविद मोहन नागर ने उक्त कार्यक्रम में पर्यावरण असंतुलन और पर्यावरण संरक्षण पर भी विस्तार से मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने इस धरती पर मौजूद हर व्यक्ति और हर जीव के भोजन पानी की व्यवस्था की है लेकिन मनुष्य प्रकृति का आवश्यकता से अधिक दोहन कर रहा है जिसके कारण आज पर्यावरण असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। धरती हर व्यक्ति की आवश्यकता पूरी कर सकती है लेकिन स्वार्थ पूरा नहीं कर सकती। आज मनुष्य के स्वार्थ के चलते जंगल खत्म होते जा रहे हैं, जंगल से कंद-मूल खत्म हो गए हैं, औषधियां खत्म होती जा रही हैं धरती में भूजल स्तर नीचे और नीचे होता जा रहा है। बैतूल जिले के जंगलों में किसी समय सफेद मूसली, शतावर, अनंतमूल और अन्य विभिन्न प्रकार की औषधियां प्रचुर मात्रा में हुआ करती थी लेकिन आज पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। हमारे जंगलों से धीरे धीरे औषधि खत्म हो गई, अब लकड़ी भी खत्म हो रही है। कभी पंडित भवानी प्रसाद मिश्र ने हमारे यहां बैठकर कविता लिखी थी कि ‘‘सतपुड़ा के घने जंगल उंघते अनमने जंगल’’। मेरी नजर में उनकी यह कविता जंगल की आरती है। लेकिन आज जंगल ही खत्म होने की कगार पर आ चुके हैं। यह सब मनुष्य के स्वार्थ की वजह से हुआ है। उन्होंने आह्वान किया कि वनों को बचाना होगा पर्यावरण संतुलन के लिए जैव विविधता को कायम रखना होगा। इसके लिए मनुष्य के साथ साथ वन्य प्राणियों यहां तक कि कीट पतंगों और तितलियों तक का जीवित रहना भी अनिवार्य है। तभी जैव विविधता कायम रहते हुए पर्यावरण संतुलन बना रह सकता है। उन्होंने चेताया की आवश्यकता से अधिक दोहन करने पर प्रकृति भी प्रतिकार करती है पिछले दिनों आई विभिन्न महामारियाँ प्रकृति के साथ खिलवाड़ का परिणाम है। अतः जल जंगल और जमीन और जीवन बचाने व्यक्तियों को स्वयं जागरूक होना पड़ेगा।
जंगल आदिवासी समाज के सुपुर्द हो जाएं तो एक भी पेड़ नहीं कटेगा
श्री नागर ने कहा कि आदिवासी वीरों ने बैतूल जिले में जंगल बचाने के लिए अपना खून बहाया है। अंग्रेज जब रेल लाइन बिछा रहे थे तब पटरी के नीचे लगने वाले लकड़ी के स्लीपर जंगलों की सागौन काटकर लगाए जाते थे। ऐसे हर स्लीपर पर आदिवासी भाइयों का खून लगा है। बैतूल जिले की सागौन काटकर अंग्रेज लंदन ले गए और बर्मिंघम पैलेस में यह लकड़ी लगाई। आदिवासी भाई जब जंगल काटने का विरोध करते थे तो अंग्रेज उनकी हत्या तक कर देते थे। बैतूल जिले सहित मध्यप्रदेश, झारखण्ड सहित देश के विभिन्न आदिवासी अंचलों में जंगल बचाने के लिए लाखों आदिवासी भाइयों का खून बहा है। इसलिए मेरा मानना है कि जंगल यदि आदिवासी समाज के सुपुर्द कर दिए जाएं तो जंगल से एक भी पेड़ नहीं कटेगा। वन अधिकार कानून भी इसी दिशा में एक कदम माना जा सकता है।
जैव विविधता का केंद्र बनें जंगल
श्री नागर ने कहा कि हमारा प्रयास यह हो कि जंगल पुनः जैव विविधता का केंद्र बने। जंगलों में सभी प्रकार के वन्यजीव हैं, कंद मूल फल भी हों। हर प्रकार के फल फूल, औषधियां हमारे जंगल मे होना चाहिए। हमारे पूर्वजों ने 84 लाख जीव जंतुओं का वर्णन किया है। इन सभी का जीवन पर्यावरणीय संतुलन के लिए जरूरी है। उन्होंने आह्वान किया कि हमें भी अपने पूर्वजों की राह पर चलते हुए पर्यावरण और जैव विविधता को बचाना होगा। जंगल को, पेड़ों को बचाना हमारा काम है। वर्षा जल को भी धरती में उतारना पड़ेगा । संवेदना आधारित विकास करना पड़ेगा। तभी पर्यावरण बचेगा और मनुष्य जीवन भी सुरक्षित रहेगा।