भोपाल : संस्कृत, भारत की प्राचीनतम भाषा है, संस्कृत के उत्थान से देश का उत्थान होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की "वर्ष 2047 के विकसित भारत" संकल्पना को साकार करने में संस्कृत भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका एवं योगदान होगा। संस्कृत के माध्यम से देश, पुनः भारतीय ज्ञान परम्परा से जुड़कर विश्व के समक्ष स्वत्व की पहचान पुनर्स्थापित करेगा। यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इन्दर सिंह परमार ने भोपाल के वैशालीनगर स्थित "राज्य पशुपालन प्रशिक्षण संस्थान" के सभागार में महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान एवं संस्कृत भारती मध्यभारत के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित "जनपद संस्कृत सम्मेलन" के शुभारंभ अवसर पर कही।

उच्च शिक्षा मंत्री परमार ने कहा कि सभ्य एवं संवेदनशील समाज निर्माण के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसरण में शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन हो रहे हैं। अपनी भाषा के उत्थान के संकल्प, तथ्यों एवं सही इतिहास के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप क्रियान्वयन किया जा रहा है। अपनी भाषा, ज्ञान परम्परा, गौरवशाली इतिहास एवं अपनी उपलब्धियों पर गर्व के भाव के साथ लोकतांत्रिक और संवैधानिक रूप से, राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए सभी की सहभागिता आवश्यक है। परमार ने कहा कि सैंकड़ों वर्षों के कठिन संघर्ष और दृढ़ संकल्प से राम मंदिर की पुनर्स्थापना हुई है। भारत को विश्व मंच पर "विश्वगुरु" बनकर परम वैभव की प्राप्ति और देश में आदर्श राम राज्य स्थापित करने के संकल्प में सभी को नींव का पत्थर बनने की आवश्यकता है। परमार ने सम्मेलन की सार्थकता और सफलता के लिए शुभकामनाएं दी। उन्होंने सम्मेलन में आयोजित संस्कृतमय वास्तु प्रदर्शनी एवं विज्ञान प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया।

महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान, भोपाल के अध्यक्ष भरत बैरागी ने वैश्विक परिदृश्य में संस्कृत भाषा की परिदशा पर विचार करने को कहा। बैरागी ने कहा कि संस्कृत हमारे जीवन का अंग है। संस्कृत से सामाजिक और समसामायिक समस्याओं का समाधान संभव है।

इस अवसर पर क्षेत्र संगठन मंत्री संस्कृत भारती मध्यक्षेत्र प्रमोद पंडित, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भोपाल परिसर के निदेशक प्रो. रमाकांत पांडेय, करुणाधाम आश्रम भोपाल के पं. सुदेश शांडिल्य, संस्कृत भारती के प्रांताध्यक्ष एवं अपर संचालक पशुपालन विभाग सीहोर डॉ.अशोक भदौरिया सहित विभिन्न अधिकारी-पदाधिकारीगण एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।