धर्म ग्रंथों के अनुसार, हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इस व्रत में शाम को शिवजी की पूजा की जाती है। प्रदोष काल यानी शाम को पूजा करने के कारण ही इसे प्रदोष व्रत कहा गया है।

इस बार वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 17 अप्रैल, सोमवार को होने से इस दिन सोम प्रदोष का व्रत किया जाएगा। वैशाख मास में सोम प्रदोष का योग बहुत ही शुभ है। आगे जानिए इस व्रत की विधि, मुहूर्त व अन्य खास बातें.

सोम प्रदोष के शुभ योग व मुहूर्त (Som Pradosh April 2023 Shubh Yog)
पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 17 अप्रैल, सोमवार की दोपहर 03:46 से 18 अप्रैल, मंगलवार की दोपहर 01:27 तक रहेगी। त्रयोदशी तिथि की संध्या 17 अप्रैल को रहेगी, इसलिए इसी दिन ये व्रत किया जाएगा। इस दिन ब्रह्म और इंद्र नाम के 2 शुभ योग होने से इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06:31 से रात 08:54 तक रहेगा।

इस विधि से करें रवि प्रदोष व्रत-पूजा (Som Pradosh Puja Vidhi)
- सोम प्रदोष की सुबह यानी 17 अप्रैल को उठकर स्नान आदि करें और दिन भर सात्विक रूप से रहें। संभव को बिना खाए-पिए ये व्रत करें, नहीं तो फलाहार या गाय का दूध ले सकते हैं।
- शाम को शिवजी की पूजा करें। सबसे पहले शिवलिंग का शुद्ध जल से फिर पंचामृत से और इसके बाद पुन: शुद्ध जल से अभिषेक करें। शिवलिंग पर फूल चढ़ाएं। दीपक जलाएं।
- इसके बाद बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़ा, फूल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। इस दौरान ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। सत्तू का भोग लगाएं सबसे अंत में आरती करें।
- आरती के बाद सोम प्रदोष की कथा भी सुनें। इस तरह प्रदोष व्रत की पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और हर तरह की समस्या दूर रहती है।

ये है सोम प्रदोष की कथा
किसी नगर में एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। वह शिव भक्त थी और प्रदोष व्रत पूरे मनोयोग से करती थी। वह भीख मांगकर अपना और अपने पुत्र का जीवन यापन करती थी। एक दिन जब वह भीख मांगकर घर लौट रही थी, तभी उसे एक लड़का घायल अवस्था में दिखा। वह विधर्व देश का राजकुमार था। दुश्मनों ने उसके राज्य पर अधिकार कर लिया था। ब्राह्मणी उसे अपने साथ घर ले आई। राजकुमार भी उस ब्राह्मणी के पुत्र के साथ रहने लगा। युवा होने पर एक दिन राजकुमार को गंधर्व कन्या ने देख लिया और उस उस पर मोहित हो गई। जल्दी ही दोनों का विवाह भी हो गया। राजकुमार ने गंधर्वों की सेना लेकर अपना राज्य दुश्मनों से पुन: प्राप्त कर लिया। राज्य पाकर राजकुमार ने ब्राह्मणी के पुत्र को अपना मुख्य सलाहकार बनाया। इस तरह प्रदोष व्रत के प्रभाव से उस ब्राह्मणी को सुखों की प्राप्ति हुई।