नई दिल्ली। भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता ‎मिलेगी या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ मंगलवार से सुनवाई
करेगी। ‎पिछले लंबे समय से इस पर बातचीत चल रही थी और अब चा‎यिकाओं पर सुनवाई हो रही है। भारत में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई करेगी। इन याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली बेंच में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस. रवींद्र भट, जस्टिस पीएस. नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल रहेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 13 मार्च को इन याचिकाओं को 5 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था और कहा था कि यह मुद्दा ‘बुनियादी महत्व’ का है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि यह मुद्दा एक ओर संवैधानिक अधिकारों और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम सहित विशेष विधायी अधिनियमों से संबंधित है, जिसका एक-दूसरे पर प्रभाव है। बेंच ने कहा, ‘हमारी राय है कि यदि उठाए गए मुद्दों को संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के संबंध में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा हल किया जाता है, तो यह उचित होगा। इस प्रकार, हम मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष भेजने का निर्देश देते हैं।’
जानकारों का कहना है ‎कि इस मामले की सुनवाई और फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा, क्योंकि आम नागरिक और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं। हालां‎कि केंद्र ने समलैंगिक विवाहों के लिए कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया है और कहा है कि संबंधित मामला व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन के साथ ‘पूर्ण विनाशकारी’ साबित होगा। केंद्र ने इस बात पर जोर दिया कि एक रिश्ते को कानूनी मंजूरी देना अनिवार्य रूप से विधायिका का कार्य है। इसने कहा कि अगर समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाती है, तो इस मुद्दे का गोद लेने जैसे कानून पर प्रभाव पड़ सकता है।