भोपाल। भारत सरकार ने 2024 तक देश के प्रत्येक गांव के हर घर में नल से जल पहुंचाने का लक्ष्य रखा है लेकिन मप्र की राजधानी भोपाल में ही घरों को नल से जल का कनेक्शन उपलब्ध नहीं हो पाया है। सूत्रों का कहना है कि योजना की राशि कम होने के कारण कोई भी एजेंसी योजना के तहत काम करने को तैयार रही हो रही है। इस कारण भोपाल में करीब 50 हजार घरों को अभी भी नल जल का इंतजार है।
 जल-जीवन मिशन कार्यक्रम की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2019 को की थी, जिसे वर्ष 2024 तक पूर्ण करना था। इस वर्ष लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए प्रदेश सरकार इसी वर्ष हर घर नल से जल पहुंचाने की दिशा में तेजी से काम कर रही है। भोपाल की बात करें तो यह नल-जल योजना में पिछड़ा हुआ है। बता दें कि जिला पंचायत भोपाल द्वारा सभी 222 ग्राम पंचायतों में जल-जीवन मिशन कार्यक्रम के तहत नल-जल प्रदाय योजना का काम चल रहा है।
 379 करोड़ में काम करने तैयार नहीं एजेंसियां
 राजधानी के 50 हजार से अधिक परिवारों को नलों के जरिए घरों में पानी मिलने के लिए अभी और इंतजार करना होगा। वजह यह है कि 379 करोड़ रुपए की लागत से वॉटर सप्लाई नेटवर्क तैयार का प्रोजेक्ट करने के लिए कंपनी या निर्माण एजेंसी तैयार नहीं हो रही हैं। यह राशि कम लग रही है। कुछ कंपनियां लागत में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी करने की बात अफसरों से कह चुकी हैं। दरअसल, अमृत 2 के तहत जलप्रदाय सिस्टम तैयार करने और इसे बेहतर बनाने के लिए करीब 379 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को केंद्र व राज्य सरकार ने मंजूरी दी है। इसके लिए नगर निगम ने पिछले साल विधानसभा चुनाव के पहले टेंडर जारी किए थे। इसमें कोई एजेंसी नहीं आई। ऐसे में इस साल आचार संहिता हटने के बाद फिर टेंडर किए गए। इसकी आखिरी तारीख पिछले हफ्ते ही समाप्त हुई। अधिकारियों ने बताया कि केवल एक ही कंपनी ने ऑफर दिया है। नियमानुसार इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अब तीसरी बार टेंडर जारी करना होंगे। यानि एक-दो महीने बाद ही प्रोजेक्ट का कार्य शुरू होने की स्थिति में पहुंचने की संभावना है।
एसओआर से लागत का अनुमान
गौरतलब है कि सडक़, पुल, फ्लाय ओवर निर्माण के साथ बिजली, जलप्रदाय व सीवेज आदि के कार्यों के लिए शासन की ओर से शेड्यूल ऑफ रेट (एसओआर) तय किया जाता है। स्पेसिकिशेन के मुताबिक प्रत्येक सामग्री की दरें निर्धारित होती हैं। सप्लाय आइटम भी इसमें शामिल हैं। इसके आधार पर ही किसी भी कार्य की अनुमानित लागत तय की जाती है। राजधानी के लिए अमृत 2 की डीपीआर बनाने वाले कंसलटेंट ने भी इसका पालन करते हुए वर्ष 2021 के एसओआर से जलप्रदाय की योजना बनाई और इस पर होने वाले खर्च का अनुमान लगाया। पहली बार टेंडर जारी होने के पहले इच्छुक ठेकेदारों को निगम की ओर से योजना की जानकारी दी गई। बताया जा रहा है ठेकेदारों ने लागत के आंकलन को कम बताया था। इसे 20 प्रतिशत तक बढ़ाने की बात कही थी।
निगम को देना होगा 17 फीसदी राशि
अमृत के लिए बनी केंद्र व राज्य की साधिकार समितियों से 379 करोड़ रुपए की योजना के लिए मजूरी मिली है। इससे अधिक लागत पर टेंडर यदि मंजूर किया जाता है तो अंतर की राशि निगम को मिलाना होगी। यह निगम के लिए किसी भी स्थिति में संभव नहीं हो सकेगा। इसके पीछे वजह यह है कि पहले से ही मंजुर परियोजना लागत की 17 फीसदी राशि निगम को देना है। यह राशि लगभग 63 करोड़ रुपए है। तंगहाल बीएमसी के लिए इसकी व्यवस्था करना ही मुश्किल है। यहां बता दें कि अमृत योजना के पहले चरण में अपने हिस्से का इंतजाम करने के लिए बीएमसी को पौने दो सौ करोड़ रुपए म्युनिसिपल बॉन्ड लाना पड़ा था। यह एक तरह का कर्ज ही होता है जिसकी किश्त का भुगतान हर साल निगम को करना होता है। यह लोन अभी चल रहा है।