तेल की कीमतों में आज मिला-जुला कारोबार देखने को मिला है. किसानों द्वारा नीचे भाव में बिकवाली नहीं करने से एक ओर जहां सरसों तेल-तिलहन और सोयाबीन तिलहन कीमतों में सुधार आया. वहीं, सूरजमुखी तेल के सस्ता होने से सोयाबीन तेल कीमतों में गिरावट आई है. 

जानें का क्या एक्सपर्ट की राय?

एक्सपर्ट का मानना है कि पिछले तीन माह में मार्च तक सूरजमुखी तेल का 8.68 लाख टन का आयात हो चुका है जो अगले लगभग छह महीने की मांग पूरा करने के लिए पर्याप्त है. आगे आयात और बढ़ेगा और सूरजमुखी तेल का दाम इतिहास में पहली बार सीपीओ, पामोलीन से कम हो गया है जिससे सोयाबीन की भी मांग प्रभावित हुई है. बंदरगाह पर सूरजमुखी तेल का थोक भाव लगभग 78 रुपये लीटर बैठता है और न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से देशी तेल-तिलहनों का भाव 125-135 रुपये लीटर बैठता है. 

सरसों तेल का क्या हुआ भाव?

ऐसी स्थिति में देशी तेल-तिलहनों का बाजार में खपना मुश्किल होता जा रहा है. सबसे बड़ी समस्या देशी तिलहनों से प्राप्त होने वाले खल की है जिसके आयात में भी समस्या है क्योंकि इसकी विदेशों में कम उपलब्धता की वजह से आयात मांग का पूरा करना मुश्किल होगा. पिछले साल सरसों खल का भारी मात्रा में निर्यात हुआ था, लेकिन इस बार देश को अपनी खपत के लिए सरसों खल की दिक्कत आ सकती है.

सस्ते हुए कई तेल

सूत्रों ने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच चार महीने के लिए व्यापार गलियारा खोलने के कारण सूरजमुखी के भाव सीपीओ, पामोलीन तेल से भी सस्ते हो गये हैं. सूरजमुखी के भाव बेहद कम होने से सोयाबीन की मांग प्रभावित हुई है. इसी वजह से देश के सरसों और सूरजमुखी तेल भी एमएसपी से नीचे दाम पर बिक रहे हैं. तेल पेराई करने वाली मिलों को देशी तिलहनों की पेराई करने में 4-5 रुपये किलो का नुकसान है.