प्राचीन काल से ही मनुष्य का पशु-पक्षियों से रिश्ता अटूट रहा है. साथ ही हिंदू संस्कृति में पशु-पक्षियों को देवी-देवताओं के वाहन के रूप में भी स्थान मिला है. ऐसे ही साबरकांठा जिले में इन पशु-पक्षियों और इंसानों के रिश्ते को अटूट प्रतीक के रूप में भारत का एकमात्र पक्षी मंदिर स्थित है.

रोडा के मंदिर 7वीं शताब्दी के सात मंदिरों का एक समूह हैं. साबरकांठा जिले के मुख्यालय हिम्मतनगर से 15 किमी की दूरी पर स्थित रोड़ा के ये मंदिर आज भी खड़े होकर हमारे पूर्वजों की कलात्मकता और पशु-पक्षियों के प्रति उनके असीम प्रेम का वर्णन करते हैं. यहां देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर तो मौजूद हैं ही, एक पक्षी मंदिर भी मौजूद है. भारत का एकमात्र पक्षी मंदिर जहां हमारे पूर्वज पक्षियों की पूजा करते होंगे. ब्रिटिश सरकार ने भी इस पर ध्यान दिया है. तो इसका जिक्र उस समय के गैजेट में भी है जब गुजरात महाराष्ट्र से अलग हुआ था.

भगवान विष्णु के साथ-साथ पक्षियों की भी पूजा

यहां के सभी मंदिर कला, नक्काशी और वास्तुकला के बेहतरीन नमूने हैं. यह पक्षी मंदिर यहां शिव मंदिर, विष्णु मंदिर, नौ ग्रह मंदिर और लादेची माता मंदिर के बराबर में स्थित है. मंदिर के अंदर फिलहाल कोई मूर्ति नहीं है, लेकिन भीतरी दीवार पर उकेरी गए पशु-पक्षियों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां भगवान विष्णु के साथ-साथ पक्षियों की भी पूजा की जाती थी. तो एक लोक परंपरा के अनुसार, यहां सबसे पहले गधेश्वर नगर था और ऐसे 125 मंदिर यहां मौजूद थे. जिनमें से केवल 7 मंदिर ही आज अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

यूं तो कई ऐसी वास्तुकलाएं हैं जो दुनिया में अनूठी हैं लेकिन रख-रखाव के अभाव में ये वास्तुकलाएं खंडहर होती जा रही हैं. यदि सरकार द्वारा यहां उचित मरम्मत करायी जाये तो निश्चित ही यह क्षेत्र पूरे गुजरात में उभरेगा. इन मंदिरों की अगर कोई विशेषता है तो वह है इनका निर्माण. यहां मंदिरों की चिनाई में चूने या किसी अन्य सामग्री का उपयोग नहीं किया गया है.

महिलाएं एक-दूसरे से नहीं टकराती

यहां निर्माण के लिए उपयुक्त पत्थरों को तैयार कर व्यवस्थित किया गया है. यूं तो यह मंदिर साबरकांठा जिले में ही मौजूद है, लेकिन जिले के ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी नहीं है. साबरकांठा प्रशासन और गुजरात पुरातत्व विभाग की उदासीनता के कारण ये मंदिर आज उतने लोकप्रिय नहीं हो पाये हैं जितने होने चाहिए थी. यहां बहुत से लोग आते हैं. यहां एक कुंड भी है, ईस कुंड में 900 से ज्यादा महिलाएं एक साथ बाहर जा सकती है, लेकिन कुंड का निर्माण इस तरह से किया गया है कि महिलाएं एक-दूसरे से नहीं टकराती है.

इन मंदिरों की एक और कथा यह है कि खासतौर पर लोगों का मानना है कि यहां की लादेची माता सभी लोगों की मन्नत भी पूरी होती हैं. यदि संतान प्राप्त न हो रहे हो और कोई उसमें विघ्न हो तो संतान प्राप्ति होती है. इसलिए आसपास के कई गांवों के लोग पहले बच्चे या लड़की के मन्नत के लिए यहां आते हैं और यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है, फिर शिवरात्रि और श्रावण महीनों में भी शिव मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है.

भक्तों को यहां आने में काफी दिक्कत होती है

7 मंदिरों और मंदिर की नक्काशी के अलावा यहां आस्था से जुड़े भक्त भी बड़ी संख्या में आते हैं, लेकिन यहां आने का रास्ता ऊबड़-खाबड़ है, इसलिए बरसात में भक्तों को यहां आने में काफी दिक्कत होती है. इसके अलावा रात के समय बिजली नहीं रहने से श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है. ऐसे में अगर यहां सड़क बनती है तो निश्चित रूप से यहां आने वाले लोगों को भी फायदा हो सकता है. नवग्रह मंदिर या शिव मंदिर में आने वाले श्रद्धालु या फिर विदेशी लोग भी सड़क न होने के कारण भटक जाते हैं, तो मांग है कि सड़क जल्द बनाई जाए.