एमपी के चंबल इलाके में प्राचीन मोटे गणेश जी का मन्दिर है. यहाँ पर बुधवार के दिन काफी भक्त लोग पहुँचते है. इस मंदिर में आने वाले भक्त दूब लेकर आते है. भगवान गणेश जी पर दूब के बिना (जिसे दूब घास भी कहते हैं) पूजा पूरी नहीं मानी जाती है.आज हम इस खबर में आपको बताएंगे कि गणेश जी की पूजा में दूब घास का क्या महत्व होता है और इसके बिना पूजा अधूरी क्यों होती है.

भिंड जिले का गौरी सरोवर पर बना मोटे गणेश जी की प्रतिमा 5 फूट ऊंची जिले की सबसे बड़ी प्रतिमा है. यह मंदिर करीबन 1000 साल पुराना है. आज इस मंदिर पर लाखों भक्त की आस्था जुड़ी है. इस मंदिर पर आने वाले भक्त गणेश जी को दूब चढ़ाते हैं. वैसे तो सभी मंदिरों पर अलग-अलग तरह से भोग लगाने की मान्यता है. एमपी के चंबल के इस मंदिर पर भगवान गणेश जी पर दूब चढ़ाकर भोग लगाया जाता है. मान्यता है ऐसा करने से बच्चों की बुद्धि का विकास होता है और घर में ग्रह क्लेश से भी दूरियां मिलती हैं. मंदिर के पुजारी संजय नगाइच का कहना है भगवान गणेश को दूब अति प्रिय है. इसे भगवान गणेश पर चढ़ाने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

क्या कहती है पैराणिक कथा
पैराणिक कथाओं के अनुसार एक बार अनलासुर नाम का एक राक्षस था, वह राक्षस साधुओं को जिंदा ही निगल लेता था. जिसके प्रकोप से चारों तरफ उस समय हाहाकार मचा था. फिर सभी साधुओं और संतों ने मिलकर भगवान गणेश जी की प्रार्थना करना शुरू की और अनलासुर के बारे गणेश जी को बताया था गणेश जी फिर राक्षस अनलासुर के पास गए थे, फिर उस राक्षस को ही उन्होंने निगल लिया था. इसके बाद उनको सही से पाचन ना होने कि वजह से बहुत तेज से पेट के अंदर गर्मी पैदा होने लगी. तभी कश्यप ऋषि ने उस ताप को शांत करने के लिए गणेशजी को 21 दूब घास खाने को दी थी. इससे गणेशजी का ताप शांत हो गया था इस कारण की वजह से यह माना जाता है कि गणेश जी दूब घास चढ़ाने से जल्द प्रसन्न होते हैं.

यहाँ मौजूद है मंदिर:
बुधवार के दिन भिण्ड शहर में बना प्राचीन मंदिर पर भारी भीड़ होती है.इस दिन भक्तों का सुबह से स हुजूम देखने को मिलेगा.अगर आप भी मन्दिर लर जाना चाहते है.तो शहर के गौरी सरोवर पर यह मंदिर मौजूद है.आप शास्त्री चौराहे से राइट साइड की गली से जा सकते हैं.