उत्तराखंड के चमोली जिले में पौराणिक गोपीनाथ मंदिर स्थित है, जो अपनी आकर्षक और विशाल निर्माण शैली के लिए प्रसिद्ध है. मंदिर का निर्माण कत्यूरी वंश के शासकों ने करवाया था. इसके परिसर में पौराणिक त्रिशूल आज भी स्थित है, जिसे उंगली से हिलाने से मन की इच्छा पूरी होती है. मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने क्रोधित होकर कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका, तो वह यहां स्थापित हो गया था. मान्यता है कि दाहिने हाथ की छोटी उंगली से त्रिशूल को छूने से अगर मनोकामना मागें, तो त्रिशूल के शीर्ष पर लगा कुंडल हिलने लगता है और कुंडल के हिलने का अर्थ मनौती पूरी होने का संकेत माना जाता है. वहीं जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है, तो वह पुनः त्रिशूल की पूजा करने यहां पहुंचते हैं.

कुंडल से मिलता है ये संकेत!

वरिष्ठ पत्रकार/ जानकार क्रांति भट्ट बताते हैं कि गोपीनाथ मंदिर परिसर में स्थित त्रिशूल आकाश भैरव का त्रिशूल है, जिससे भोलेनाथ ने ध्यान भंग होने के बाद कामदेव को भस्म किया था. मान्यता है कि दाहिने हाथ की छोटी उंगली से त्रिशूल को छूने से अगर मनोकामना मागें तो, त्रिशूल के शीर्ष पर लगा कुंडल हिलने लगता है और कुंडल के हिलने का अर्थ मनौती पूरी होने के संकेत से माना जाता है.

गोपीनाथ मंदिर का महत्व!

वहीं मंदिर का महत्व बताते हुए पुजारी उमेश भट्ट कहते हैं कि गोपीनाथ मंदिर पंच केदारों में से चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ का गद्दी स्थल है. मंदिर की अलग-अलग किवदंतियां हैं. जिसमें कि एक यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण जब यहां रासलीला कर रहे थे, तब भगवान शिव गोपी का रूप धारण कर रासलीला में शामिल हो गए. इतने में ही कृष्ण ने भगवान शिव को पहचान लिया और उन्हें प्रणाम करते हुए कहा कि आप तो गोपियों के नाथ हैं, तब से इस स्थान का नाम गोपीनाथ पड़ा.