भोपाल । मप्र में कांग्रेस इस बार काफी सजग और सतर्क नजर आ रही है। इसलिए पार्टी ने अभी तक एक भी टिकट की घोषणा नहीं की है। दरअसल, पार्टी दावेदारों को हर तरह से परख रही है। इसके लिए एक और पैमाना बनाया गया है, वह है जन आक्रोश यात्रा में परफॉर्मेंस। इसके लिए पार्टी नेताओं की सक्रियता का आकलन कर रही है। जो नेता जन आक्रोश यात्रा में शामिल नहीं हुए हैं उनको टिकट नहीं दिया जाएगा।
गौरतलब है कि प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिए कांग्रेस में 5 हजार से अधिक नेता दावेदारी कर रहे हैं। इस कारण कांग्रेस में नेताओं को हर स्तर पर परखा जा रहा है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने भाजपा के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी को बूस्ट करने के लिए जन आक्रोश यात्रा निकाली थी। जन आक्रोश यात्रा पूरे प्रदेश में मिले जन समर्थन से पार्टी के वरिष्ठ नेता गदगद हैं। इसके इतर, पार्टी ने कई स्थानों पर वरिष्ठ नेताओं व टिकट के दावेदारों द्वारा जन आक्रोश यात्रा से दूरी बनाने को गंभीरता से भी लिया है। पार्टी हाईकमान का कहना है कि जन आक्रोश यात्रा किसी नेता की नहीं, कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित की गई यात्रा थी। इसी कारण सातों यात्राओं में प्रदेश के नेताओं के साथ एआईसीसी के सचिव भी पूरे समय उपस्थित रहे, जो हर गतिविधियों पर नजर रख रहे थे। वे यह भी देख रहे थे कि क्षेत्र में टिकट के दावेदार किस नेता का कितना प्रभाव है।
गौरतलब है कि कांग्रेस ने गणेश चतुर्थी से जन आक्रोश यात्रा का आगाज किया था। यात्रा ने 15 दिन में सभी 230 विधानसभाओं को कवर किया। भाजपा के खिलाफ चल रही एंटी इन्कम्बेंसी का फायदा उठाने के लिहाज से यात्रा का खाका तैयार किया गया था। भाजपा ने जहां अपनी जनआशीर्वाद यात्रा में क्षेत्रीय चेहरों को दरकिनार करते हुए केंद्रीय नेताओं को यात्रा की कमान सौंपी थी। वहीं, कांग्रेस ने क्षेत्रीय नेताओं को मैदान में उतारकर, जनता को जमीनी मुद्दों पर चुनाव लडऩे का मैसेज देने की कोशिश की। लेकिन इस यात्रा में कई नेता दूरी बनाए रहे। अब एआईसीसी के सचिवों ने अपनी रिपोर्ट भी पार्टी हाईकमान को सौंप दी है। बताया जाता है कि विंध्य और ग्वालियर-चंबल इलाके में कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं ने पार्टी द्वारा निकाली गई जन आक्रोश यात्राओं से दूरी बना ली थी और पार्टी को कोई सूचना भी नहीं दी थी, जबकि कुछ नेता व्यक्तिगत कारणों से यात्रा में शामिल नहीं हुए थे। ऐसे नेताओं ने यात्रा प्रभारियों को सूचना दी थी। दिल्ली में दो दिन पहले हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में यात्रा में चल रहे एआईसीसी के सचिवों ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और बताया कि किस जिले में कौन-कौन नेता पार्टी द्वारा निकाली गई जन आक्रोश यात्रा में शामिल नहीं हुए और वे टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। बताया जाता है कि कांग्रेस पार्टी के प्रभारी महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने इसे काफी गंभीरता से लिया और साफ कहा कि ऐसे नेताओं को टिकट देने पर विचार नहीं किया जाए। इससे अच्छा संदेश नहीं जाएगा। सुरजेवाला ने कहा कि पार्टी से बड़ा कोई नहीं है।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी हाईकमान के निर्देश के बाद भी यात्रा से अपने- आप को दूर रखने वाले को कारण बताओ नोटिस जारी करने पर भी विचार किया जाएगा। सुरजेवाला का साफ कहना है कि पार्टी में सबसे ज्यादा जरूरी अनुशासन है। इसका पालन नहीं करने वालों पर कार्रवाई होना चाहिए, ताकि भविष्य में पार्टी का कोई नेता या कार्यकर्ता अनुशासनहीनता नहीं करे। गौरतलब है कि इस यात्रा के जरिए कांग्रेस ने करीब 11,400 किलोमीटर की दूरी को कवर किया। यह यात्रा मप्र के सातों संभागों से होकर गुजरी। इस यात्रा की जिम्मेदारियां विधानसभा स्तर पर नेताओं के वर्चस्व के आधार पर तय की गई थी। यात्रा में धार्मिक आयोजन और धार्मिक स्थल पर पूजा पाठ के साथ ही भोजन करने समेत कई कार्यक्रम हुए। यात्रा के दौरान जन सभा, नुक्कड़ नाटक जैसे सामाजिक कार्यक्रम भी हुए। इसी मॉडल के साथ कांग्रेस कर्नाटक के चुनावी रण में उतरी थी। जहां कांग्रेस की यात्रा सफल रही थी और यात्रा के बाद आने वाले नतीजों में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था।
कांग्रेस की जन आक्रोश यात्रा की सफलता को देखकर आलाकमान गदगद है। दरअसल, जहां भाजपा ने जनआशीर्वाद यात्रा की कमान केंद्रीय नेताओं को सौंपी थी वहीं, कांग्रेस ने भाजपा की रणनीति को काउंटर करने के लिए स्थानीय नेताओं को मैदान में उतारा था। नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, सीडब्लूसी मेंबर कमलेश्वर पटेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया और पूर्व मंत्री जीतू पटवारी को कांग्रेस ने यात्रा की कमान सौंपी थी। इसके जरिए कांग्रेस ने एक साथ कई समीकरणों को साधा है। नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ग्वालियर-चंबल की राजनीति में अच्छी-खासी दखल रखते हैं। पूर्व मंत्री और कांग्रेस के यूथ चेहरे जीतू पटवारी के कार्यक्रमों में भारी भीड़ हुई। किसानों के मुद्दे पर पटवारी सरकार का मुखर विरोध करते देखे गएं, इसी की बानगी बीते दिनों इंदौर में आयोजित किसान ट्रैक्टर रैली में देखने को मिली थी। ओबीसी वर्ग से आने वाले कमलेश्वर पटेल ने विंध्य में भाजपा के खिलाफ चल रही लहर को और मजबूती दी है। बुंदेलखंड के जातीय समीकरणों के लिहाज से पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव को जिम्मेदारी सौंपी गई है। वहीं, आदिवासी वर्ग से आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया कद्दावर नेता होने के साथ-साथ जातिगत समीकरणों को साधने में भी कांग्रेस के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं।