भोपाल। विंध्य क्षेत्र की 30 विधानसभा सीटें मध्य प्रदेश की सत्ता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। पिछड़े और दलित-आदिवासी वोटर्स के दम पर 2018 में विंध्य की 30 में से 24 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी 2023 में जीत के इसी आंकड़े को दोहराने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। विंध्य के वोटर्स का मन जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो बार यहां (शहडोल-रीवा) आ चुके हैं।केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का सतना प्रवास हो चुका है। सीएम शिवराज सिंह चौहान भी बार-बार विंध्य का दौरा कर रहे हैं।

हालांकि, विंध्य में डगर कांग्रेस के लिए भी आसान नहीं है। यहां 2003 से अभी तक कांग्रेस की सीटें सिर्फ एक बार ही दहाई के अंक तक पहुंच सकी हैं। यहां 2013 में कांग्रेस को 30 में से 11 सीटें मिली थीं। लेकिन इस बार ग्वालियर चंबल की तरह कांग्रेस बड़ी उम्मीदें लगा रही है। इसका बड़ा कारण रीवा नगर निगम जीतना और विंध्य में भाजपा की अंदरूनी कलह को माना जा रहा है।

ये दल बने भाजपा की चुनौती
विंध्य क्षेत्र से जो रिपोर्टस आ रही हैं, उसके अनुसार इस बार भाजपा को सबसे ज्यादा चुनौती क्षेत्र के पिछड़ों और दलित-आदिवासी वर्गों के दम पर चुनावी मैदान में उतरे तीसरे दल- बसपा, सपा और आप से मिल सकती है। ये दल विंध्य क्षेत्र में भाजपा की राह कठिन कर सकते हैं।विंध्य में बसपा,सपा और आप ने कई सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। इसके अलावा सिंगरौली नगर निगम जीत कर आप अपनी ताकत भी दिखा चुकी है।

इसलिए भी भाजपा की राह मुश्किल
इस बार विधानसभा चुनाव में सीधी पेशावर कांड, तीन बार के भाजपा विधायक केदार शुक्ला का टिकट कटना और सतना में मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी के बगावती स्वरों ने भी भाजपा की राह में ऐसे कांटे बो दिए हैं, जो उसकी जीत में मुश्किल पैदा कर सकते हैं। भाजपा विधायक केदार शुक्ला और नारायण त्रिपाठी तो लगातार अपनी ही पार्टी के खिलाफ लगातार बगावती तेवर बुंलद किए हुए हैं।

विंध्य में किसके पास कितनी सीटें
कुल सीटें - 30
भाजपा - 24
कांग्रेस -06